Jagannath Rath Yatra 2025: भारत की धार्मिक परंपराओं में रथ यात्रा का विशेष स्थान है। विशेषकर उड़ीसा (अब ओडिशा) के पुरी नगर में आयोजित श्री जगन्नाथ रथ यात्रा विश्वप्रसिद्ध है। यह यात्रा न केवल भारत बल्कि विश्वभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा की वार्षिक यात्रा होती है, जिसमें वे अपने मंदिर से बाहर आकर नगर भ्रमण करते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं।
हजारों भक्त भगवान के रथ को खींचते हैं। यह आध्यात्मिक चेतना का अनूठा पर्व होता है। जगन्नाथ रथयात्रा को \’गुंडिचा यात्रा\’ या \’पाटोत्सव\’ भी कहा जाता है। रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकाली जाती है और इस बार यह 27 जून 2025 शुक्रवार को निकाली जाएगी।
श्रीजगन्नाथ मंदिर का निर्माण गंग वंश के राजा ने करवाया था
जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा का इतिहास लगभग एक हजार वर्षों से भी अधिक पुराना माना जाता है। यह यात्रा श्रीजगन्नाथ मंदिर से जुड़ी हुई है, जिसका निर्माण 12वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंगदेव ने कराया था। यद्यपि रथ यात्रा की परंपरा इससे भी पूर्व से चली आ रही है, परंतु मंदिर निर्माण के बाद यह आयोजन और भी भव्य बन गया। अब तो इसमें विदेशी श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में शामिल होने आते हैं।
पौराणिक संदर्भ में रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra)
रथ यात्रा का उल्लेख श्रीमद्भागवत, स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण आदि में मिलता है। इससे जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु के पश्चात जब उनका पार्थिव शरीर जल में प्रवाहित किया गया, तब उनका हृदय जल में नष्ट नहीं हुआ। उस हृदय को नीलमाधव स्वरूप में स्थापित किया गया और बाद में उसी पवित्र हृदय को काष्ठ मूर्ति में प्रतिष्ठित कर दिया गया। कहते हैं कि यह हृदय आज भी जगन्नाथजी की मूर्ति के अंदर ब्रह्मपदार्थ के रूप में विराजमान है।
क्या है तीनों रथों की खासियत? (Jagannath Rath Yatra)
जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को प्रारंभ होती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा मंदिर से निकलकर गुंडिचा मंदिर (जो उनकी मौसी का घर माना जाता है) की ओर जाते हैं। नौ दिनों तक वे वहां रहते हैं और फिर बहुदा यात्रा (वापसी यात्रा) के द्वारा वापस श्रीमंदिर लौटते हैं।
तीन रथ: रथ यात्रा में मुख्य रूप से तीन रथ होते हैं।
तीन रथ: रथ यात्रा में मुख्य रूप से तीन रथ होते हैं। नंदीघोष (जगन्नाथजी का रथ): इसकी ऊंचाई लगभग 45 फीट होती है। इसमें 16 पहिए होते हैं और रथ का रंग लाल और पीला होता है। तालध्वज (बलभद्र का रथ): इस रथ की ऊंचाई लगभग 44 फीट होती है। रथ में 14 पहिए होते हैं और इसका रंग लाल और हरा होता है। दर्पदलन (सुभद्रा का रथ): बहन सुभद्रा के रथ की ऊंचाई लगभग 43 फीट होती है और इसमें 12 पहिए लगाए जाते हैं। इस रथ का रंग लाल और काला होता है। इन तीनों रथों को हर वर्ष नए काष्ठ से बनाया जाता है। इन्हें खींचने का कार्य भक्तों द्वारा किया जाता है और यह बहुत पुण्यदायी माना जाता है।
रथ यात्रा के विशेष आयोजन (Jagannath Rath Yatra)
पांडुका पर्व: रथ यात्रा के एक दिन पहले \’पांडुका पर्व\’ मनाया जाता है, जब भगवान जगन्नाथ को रथ में चढ़ाने से पहले छेरा पहरा (झाड़ू लगाना) कार्यक्रम होता है। पुरी के गजपति राजा स्वयं झाड़ू लगाते हैं और यह भक्तिभाव का प्रतीक है कि भगवान के सामने सभी समान हैं। गुंडिचा यात्रा: श्रीमंदिर से गुंडिचा मंदिर की यात्रा लगभग तीन किलोमीटर की होती है। भगवान वहां नौ दिन तक विराजते हैं और फिर बहुदा यात्रा से लौटते हैं। सुंदर वापसी: वापसी यात्रा के दिन जगन्नाथजी मौसी मां के मंदिर में रुकते हैं और वहां उन्हें पोड़ा पिठा (एक विशेष मिठाई) का भोग लगाया जाता है। सुनाबेसा (सोने की सजावट): बहुदा यात्रा के बाद एक दिन भगवान को सोने के गहनों से सजाया जाता है। यह दृश्य अत्यंत भव्य और अद्भुत होता है।
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
भगवान के सार्वभौमिक रूप का दर्शन: जगन्नाथ का अर्थ ही है – जग का नाथ यानी सम्पूर्ण विश्व के स्वामी। जब वे रथ पर सवार होकर मंदिर से बाहर आते हैं, तो यह दर्शाता है कि भगवान केवल मंदिर तक सीमित नहीं, बल्कि सभी के हैं – ब्राह्मण, शूद्र, स्त्री, पुरुष, विदेशी सभी को उनका दर्शन मिल सकता है। समानता और भक्ति का प्रतीक: यह यात्रा सामाजिक समरसता और समानता की प्रतीक है। जब पुरी के राजा झाड़ू लगाते हैं और सामान्य व्यक्ति रथ खींचता है, तब यह स्पष्ट होता है कि ईश्वर के सामने सब एक समान हैं। जीवन का प्रतीकात्मक संदेश: यह यात्रा जीवन की एक झलक है – जन्म (मंदिर से प्रस्थान), यात्रा (गुंडिचा गमन), विश्राम (नौ दिन), और पुनः वापसी (मृत्यु के बाद ईश्वर से मिलन)।