आजकल त्यौहारों के साथ विवाद मुफ़्त मिलता है। यह एक फैशन सा हो गया है। एक धर्म के त्यौहार पर दूसरे धर्म का व्यक्ति ज्ञान देता है। प्राइम टाइम पर टीवी में डिबेट आयोजित करके परस्पर विरोधी मत रखने वाले लोगों को जानबूझकर भिड़ाया जाता है, एक दो जन प्रतिनिधियों के विवादित बयान चलाकर माहौल गर्म किया जाता है। ना जाने ऐसा करके क्या हासिल होता है। जो व्यक्ति स्वयं अपने धर्म को नहीं समझ पाता वो भी दूसरे को धर्म पर उपदेश दे देता है जबकि कोई भी धर्म सबसे पहले स्वयं के अंदर बदलाव की बात करता है किंतु यह छोटी सी बात लोगों को समझ में नहीं आती। मेरा मानना है कि किसी भी त्यौहार और पूजा पद्धति पर टिप्पणी करने से पहले हमें संयम बरतना चाहिए।
कुछ इसी तरह होली के साथ भी तमाम विवाद जुड़ा है। होली आते ही चारों तरफ़ जल संकट उत्पन्न हो जाता है। पर्यावरण संरक्षण और पानी बचाओ अभियान को लेकर जगह जगह डिबेट शुरू हो जाती है। एक दिन की होली में कितने लीटर पानी की बर्बादी हुई यह गहन शोध का विषय बन जाता है, किन्तु रोजमर्रा की ज़िंदगी में पानी की कितनी बर्बादी होती है इस बारे में कोई नहीं सोचता। सूखी होली, ईको फ्रेंडली होली जैसे नए नए शब्द प्रयोग करके पूरे त्यौहार का मजा ख़राब कर देने वाले ये हाई फाई सोसाइटी के लोग अलग ही दुनिया में जीते हैं। ये तथाकथित बुद्धिजीवी स्वयं घंटों पूल में पड़े रहते हैं, रेन डांस पार्टी इन्जॉय करते हैं और अपने बाथरूम में झरने का आनंद शावर से लेते हैं। इनकी गाड़ियाँ रोज धोई पोछी और चमकाई हुई रहती हैं। उसके बाद जल संरक्षण के ब्रह्म ज्ञान से आलोकित ये संवेदनशील हृदय के लोग बाहर निकलते ही पर्यावरण बचाने लगते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह दिन भर एसी में रहकर ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा करते हैं। होली या दीपावली का पर्व आते ही इनके अंदर सुषुप्तावस्था में बसने वाली आत्मा यकायक जाग जाती है और पर्यावरण बचाने के लिए तड़पने लगती है। क्लास बदलते ही ग्लास में आ जाने वाले लोग जमीनी हकीकत से कोसों दूर रहते हैं। अगर वे चाहें तो सोशल मीडिया पर ज्ञान ठेलने के बजाय अपने दैनिक जीवन में बदलाव लाकर पर्यावरण संरक्षण के लिए ज्यादा काम कर सकते हैं।
इसके अलावा कुछ लोगों को रंग से भी दिक्कत है। मैं यह मान सकता हूँ कि, आधुनिक समय में केमिकल युक्त रंगों से शरीर को और विशेष रूप से चेहरे को कुछ नुकसान पहुँच सकता है लेकिन किसी भी तरह के रंग से जिन्हें दिक्कत है उनके बारे में क्या ही कहा जा सकता है। धार्मिक नियम, कायदे, कानून से ऊपर उठकर हम केवल एक साधारण मनुष्य की तरह सोचें कि, बिना रंग के किसी व्यक्ति का जीवन कैसा होगा। आपस की बातचीत में हम कई बार बोलते भी रहते हैं कि फला के जीवन में कोई रंग नहीं, अमुक व्यक्ति को देखो एकदम नीरस प्रवृत्ति का है। रंगों से कैसे बचा जा सकता है यह तो हर जगह हैं। काला सफेद भी तो रंग ही हैं। गुल, गुलशन और बहार बिना रंगों के कैसे हो सकते हैं। रंगों से ही सब कुछ है। रंग तो जीवन का सार है और वैसे भी होली केवल रंगों का त्यौहार या एक धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि ये सामाजिक सौहार्द, आपसी भाईचारे और प्रेम का भी पर्व है। लोग आपसी बैर-भाव भुलाकर गले मिलते हैं और एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। ये रंग जीवन में नया उत्साह और नई ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। रंग ही हैं जो खुशहाली लाते हैं।
ख़ैर, मेरी राय में होली का त्यौहार कई मायनों में सभी त्यौहारों से श्रेष्ठ है। यह त्यौहार जन साधारण का त्यौहार है। कम ख़र्च में ज्यादा आनंद देने वाला यह त्यौहार अपने साथ खुशियाँ लेकर आता है। आपके पास रंग नहीं है तो कोई बात नहीं। जो रंग लाया है उसी से लेकर लगा दीजिए। दिन भर पुराने कपड़े पहनकर होली खेलिए। फक्कड़ बने घूमिए। नाचिए। फगुआ गाइए। एक दूसरे से मेल मिलाप, कवि सम्मेलन, होली मिलन समारोह इत्यादि कई ऐसे कार्यक्रम होते हैं जिनसे चहल पहल बनी रहती है। होली एक सामूहिक समारोह है। यह लोगों को नजदीक लाता है। ऐसे में तार्किक बनकर बेवजह ज्ञान देने के बजाय मस्त रहकर जीवन का रसपान करते रहना चाहिए। हमारे यहाँ होली के पर्व पर होने वाले महामूर्ख सम्मेलन में हास्य और व्यंग्य से संबंधित काव्य पाठ होता था। कोरोना के बाद से उसका आयोजन बंद कर दिया गया। हाल के वर्षों में कई ऐसे बदलाव हुए जिनसे त्यौहार मनाने में लोगों की रुचि कम हुई है। एक दूसरे से दूर जाते लोगों को ये पता होना चाहिए कि होली ज़िंदादिली का त्यौहार है। इसमें बड़ा-छोटा, अमीर-गरीब कुछ नहीं होता। यदि कोई अपनी जड़ों से कट गया है तो उसे इस बार की होली अपने गाँव में या अपने लोगों के बीच में मनानी चाहिए। सबसे जुडने का इससे अच्छा मौका कोई हो ही नहीं सकता। होली का त्यौहार रिश्तों को सँजोने में मदद करता है। होली में पुराने गिले शिकवे दूर किए जाते हैं। होली एकमात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें व्यक्ति कोई गलती करने से पहले ही सामने वाले को मना लेता है कि, “बुरा ना मानो होली है”